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इस कहानी-संग्रह में मानव के सुख-दुखात्मक संवेदनों की ऐसी कथायें हैं, जो उक्त संवेदनों को सम्पूर्ण परिवेश के साथ दूसरों की अनुभूति का विषय बना देती है| डॉ. तारा द्वारा रचित कहानियाँ, अन्य कहानीकारों से हटके, परम रहस्यमय और चमत्कारिक होती हैं| ये कहानी सृजन करते वक्त, अपनी मानसिक क्रियाएँ, उनके अनुभव, कल्पना, शब्द-योजना द्वारा जीवन का ऐसा संयोजन तैयार करती हैं, जो पाठक के अंतर-जगत में प्रतिफलित होते ही विशाल और सजीव हो उठती है| जैसे 'मधुवा की माँ', 'छोटी बहू', 'आश्रिता' आदि कहानियोँ का शब्द-शब्द सिर्फ बोलता ही नहीं है, बल्कि विशेष मानसिक क्रिया द्वारा, सत्य से साक्षात्कार भी कराता है, और उसे विशेष शब्द-संयोजन में, रूपात्मकता देता है|
मेरी समझ में ऐसी उच्चस्तरीय रचनाएँ हर किसी रचनाकार के लिए लिखना संभव नहीं है| यह तो केवल डॉ. तारा जैसी, एकाग्रस्थिति वाले रचनाकार ही इस तरह की रचनायें अपने मानसिक भूमि पर प्रस्तुत कर सकती हैं| मैंने पढ़ा, देखा, डॉ. तारा, हर एक कहानी को अपनी कोरी भावुकता से बचाकर, सहानुभूति पूर्वक मान्यताओं के प्रकाश में संवारी है| इनका मानना है कि मानव युगों के अन्धकार एवं नैतिक संकीर्णता की कलंक कालिमा से सनी चेतना की चादर को, नवीण प्रकाश के जल में डूबोकर, उसे संस्कृति के व्यापक मूल्यों की स्वच्छ शोभा प्रदान कर, सब के ओढ़ने योग्य बनाना होगा| नहीं तो अंतरिक्ष के दीप्त ग्रहों में, मन के इस अंधकार को ले जाकर क्या फायदा?
अंत में आप सभी विद्वान् पाठकों से मेरा आग्रह है कि आप 'नेपथ्य का दीया' कहानी-संग्रह को पढ़िये, और कोई कमी या गलतियाँ नजर आयें, तो बेझिझक बताइये भी| आपके मंतव्य का मैं स्वागत करूँगा|